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“ ”On religions and viewpoints: He who knows one, knows none.
Friedrich Max Müller (6 December 1823 – 28 October 1900), more commonly known as Max Müller (or Mueller), was a German philologist and Orientalist, who was a major pioneer of the discipline of comparative religion.
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देवता मूलत: परात्पर, अदृश्य, अज्ञेय, दृश्य विश्व से परे, इस अपूर्ण विश्व में सर्वथा परिपूर्ण एवं सर्वांग-सम्पूर्ण इस प्राकृतिक जगत् में अतिमानवीय, दिव्य तथा सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी की अभिव्यक्ति करने के लिए बना था। जो सदैव से ही अवर्णनीय होना था उसे वे अभिव्यक्त करने में असफल रहे। लेकिन वह अवर्णननीयता स्वयं विद्यमान रही और इन सभी असफलताओं के बावजूद वह समाप्त नहीं हुई और प्राचीन चिन्तकों और कवियों के मस्तिष्क से लुप्त नहीं हुई। वे अपने प्रयत्न में हताश नहीं हुए और इसीलिए वे सदैव उसे नए और बेहतर नाम देते रहे। और तब तक उन्हें इस प्रकार सम्बोधित किया जाता रहेगा जब तक इस पृथ्वी पर मानव का अस्तित्व बना रहेगा।
गम्भीर अध्येताओं ने इन रचनाओं को शीघ्र दरकिनार कर दिया था। इन्हें सुन्दर और आकर्षक कहे जाने के दावे को खुशी से स्वीकार करते हुए भी संस्कृत साहित्य को वैश्विक-साहित्यों के बीच ग्रीक, लेटिन, इटालियन, फ्रेंच, इंगलिश या जर्मन साहित्य के बाजू में स्थान देने की नहीं सोच पाए।
जब हम कहते हैं कि वर्षा हो रही है तो उन्होंने कहा कि ‘पर्जन्य’ जल से भरे अपने पात्र को धरती पर उड़ेल रहे हैं। जब हम कहते हैं कि पौ फट रही है तो उन्होंने कहा कि उषा सुन्दरी किसी नृत्यांगना के समान अपनी कला का वैभव बिखेर रही है। हम कहते हैं अब अँधेरा हो गया तो उन्होंने कहा कि सूर्य ने अपने रथ के अश्व खोल दिए। वैदिक कवियों के लिए यह समग्र प्रकृति ही सजीव थी। उसे प्रत्येक कण-कण में देवता की उपस्थिति का अनुभव होता रहता था और उनकी उपस्थिति की इस भावना में धार्मिक एवं नैतिकता के बीज भी विद्यमान थे।